एक बार दीनदयाल जी कार से वाराणसी जा रहे थे. कचहरी के पास गाड़ी का टायर पंचर हो गया. गाड़ी में बैठे अन्य साथी तब तक कचहरी में परिचित मित्रों से भेंट करने के लिए चले गए. ड्राइवर ने पीछे से रिंच स्टेपनी आदि निकालकर चक्का खोला और उसे कसने लगा. इसी बीच पंडित जी पंचर हुए पहिए को ले जाकर पीछे रख कर शेष सारा सामान भी रख आये.
पहिए को कसकर ड्राइवर ने देखा कि चक्का नहीं है. पंडित जी हंस दिए और बोले, “जल्दी करने में थोड़ा सहयोग कर दिया है.” घटना को ड्राइवर बताते समय रो पड़ा. जहां अन्य लोग छोटी-छोटी बातों पर जल्दी करने के लिए डांट पिलाते हैं, वही वह जल्दी में सहयोगी बन कर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे थे.