Veer Savarkar Hindi Quotes – वीर सावरकर के अनमोल विचार.
वीर सावरकर भारत की आजादी के संघर्ष में एक महान ऐतिहासिक क्रांतिकारी थे। वह एक महान वक्ता, विद्वान, विपुल लेखक, इतिहासकार, कवि, दार्शनिक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वीर सावरकर का वास्तविक नाम विनायक दामोदर सावरकर था। वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के समीप भागपुर गाँव में हुआ था।
सावरकर दुनिया के अकेले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली. आइये जानते है भारत माँ के इस महान सपूत के अनमोल विचार…
बहुसंख्यकों के लिए सुलभ और अनुकूल भाषा ही राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित ही सकती है, अतः बहुसंख्यक हिन्दुओं की सांस्कृतिक भाषा हिन्दी ही सम्पूर्ण देश में समझी जा सकती है और यह राष्ट्रभाषा बन सकती है इसे संस्कृतनिष्ठ बनाने के लिए उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को प्रयुक्त न किया जाये. दृढ़ता से डटे रहकर ही विदेशियों के भाषाई आक्रमण को विफल किया जा सकता है. इसकी पूर्ण सफलता के लिए हिन्दू संकल्प लें- ‘संस्कृतनिष्ठ हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा तथा नागरी लिपि ही हमारी राष्ट्रलिपि है. ‘ऋषि दयानंद ने ठीक ही तो उद्घोष किया था कि हिन्दुस्तान के अखिल हिन्दुओं की राष्ट्रभाषा हिन्दी है. विदेशी शब्दों की घुसपैठ के कारण हिन्दी भ्रष्ट न हो. इसके लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है. भाषा राष्ट्रीयता का एक प्रमुख अंग है. हमारी संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, न्याय, दर्शन आदि सर्वागीं विषय इसी भाषा में हैं.
स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी
अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतन्त्रता हेतु प्रभु से की गई मूक प्राथर्ना भी सबसे बड़ी अहिंसा का द्दोतक है.
देशहित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति:’ शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है.
वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहास लेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए.
पतितों को ईश्वर के दर्शन उपलब्ध हों, क्योंकि ईश्वर पतित –पावन जो है. यही तो हमारे शास्त्रों का सार है. भगवद – दर्शन करने की अछूतों की माँग जिस व्यक्ति को बहुत – बड़ी दिखाई देती है, वास्तव में वह व्यक्ति स्वयं अछूत है और पतित भी, भले ही उसे चारों वेद कंठस्थ क्यों न हों.
अस्पृश्यता हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है .हिन्दू समाज के, धर्म के ,राष्ट्र के करोड़ों हिन्दू बन्धु इससे अभिशप्त हैं. जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं, तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लडवाकर, विभाजित कर सफल होते रहेंगे. इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा.
ब्राह्मणों से चाण्डाल तक सारे-के-सारे हिन्दू समाज की हड्डियों में प्रवेश कर यह जाति- अहंकार उसे चूस रहा है और पूरा हिन्दू समाज इस जाति अहंकारगत द्वेष के कारण जाति कलह के यक्ष्मा की प्रबलता से जीर्ण शीर्ण हो गया है.
कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है. यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं.
हमारी पीढी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग का चयन करे जो आहों, सिसकियों और विरह के मध्य से गुजरता है. बस,यही मार्ग कर्म का मार्ग है.
कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है.
संसार को हिन्दू जाति का आदेश सुनना पड़े ऐसी अवस्था उपस्थित होने पर उनका वह आदेश गीता और गौतम बुद्ध के आदेशों से भिन्न नहीं होगा.
प्रतिशोध की भट्टी को तपाने के लिए विरोधों और अन्याय का ईंधन अपेक्षित है, तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगेगें. इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड खाकर ही स्फुलित हो उठता है.
ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है, क्योंकि ज्ञान – युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है. ज्ञान – प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना . मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो.
Veer Savarkar Hindi Quotes – वीर सावरकर के अनमोल विचार.
देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियाँ भुनाते रहें. यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हुडियाँ भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पूण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते. वे ‘ए’ क्लास की जेल में मक्खन, डबलरोटी और मौसम्बियों का सेवन कर, दो-दो माह की जेल यात्रा से लौट कर अपनी हुडियाँ भुनाते दिखाई देते.
इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है. धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता. देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है.
परतन्त्रता तथा दासता को प्रत्येक सद्धर्म ने सर्वदा धिक्कारा है. धर्म के उच्छेद और ईश्वर की इच्छा के खंडन को ही परतन्त्रता कहते हैं. सभी परतन्त्रताओं से निकृष्टतम परतन्त्रता है – राजनीतिक परतन्त्रता और यही नर्क का द्वार है.
हिन्दू जाति की गृहस्थली है – भारत, जिसकी गोद में महापुरूष, अवतार, देवी-देवता और देव – जन खेले हैं. यही हमारी पितृभूमि और पुण्यभूमि है. यही हमारी कर्मभूमि है और इससे हमारी वंशगत और सांस्कृतिक आत्मीयता के सम्बन्ध जुड़े हैं.
Veer Savarkar Hindi Amrut Vachan – वीर सावरकर के अनमोल विचार.
मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है.
मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है.
समय से पूर्व कोई मृत्यु को प्राप्त नहीं करता और जब समय आ जाता है तो कोई अर्थात कोई भी इससे बच नहीं सकता. हजारों – लाखों बीमारी से ही मर जाते हैं, पर जो धर्मयुद्ध में मृत्यु प्राप्त करते हैं, उनके लिए तो अपूर्व सौभाग्य की बात है. ऐसे लोग तो हुतात्मा ही होते हैं.
समान शक्ति रखने वालों में ही मैत्री संभव है.
जिस राष्ट्र में शक्ति की पूजा नहीं, शक्ति का महत्व नहीं, उस राष्ट्र की प्रतिष्ठा कौड़ी कीमत की है. प्रतिष्ठा के न होने का प्रमाण है – पड़ोसी देश लंका ,पूर्वी पकिस्तान, पश्चिमी पकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रहा दुर्व्यहार, जिसके लिए भारत सरकार मात्र विरोध – पत्र ही भेज सकती है, कर कुछ नहीं सकती.
महान हिन्दू संस्कृति के भव्य मन्दिर को आज तक पुनीत रखा है संस्कृत ने. इसी भाषा में हमारा सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वोत्तम तथ्य संगृहीत हैं. एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति के आधार पर ही हम हिन्दुओं की एकता आश्रित और आघृत है.
Veer Savarkar Hindi Quotes – वीर सावरकर के अनमोल विचार.
भारत की स्वतन्त्रता का और सार्वभौम संघ – राज्य बनाने का श्रेय किसी एक गुट को नहीं, अपितु उसका श्रेय पिछली दो – तीन पीढी के सर्वदलीय देशभक्तों को सामूहिक रूप से है. स्वयं को असहयोगवादी और अहिंसक कहलानेवाले हजारों देशभक्तों ने इस स्वतन्त्रता के लिए जो भारतव्यापी कार्य किया, उसके प्रति हम सबको कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए.
हिन्दू धर्म कोई ताड़ –पत्र पर लिखित पोथी नहीं जो ताड़ – पत्र के चटकते ही चूर–चूर हो जायेगा, आज उत्पन्न होकर कल नष्ट हो जायेगा. यह कोई गोलमेज परिषद का प्रस्ताव भी नहीं, यह तो एक महान जाति का जीवन है; यह एक शब्द- भर नहीं, अपितु सम्पूर्ण इतिहास है – अधिक नहीं तो चालीस सहस्त्राब्दियों का इतिहास इसमें भरा हुआ है.
अन्याय का जड़ से उन्मूलन कर सत्य –धर्म की स्थापना – हेतु क्रांति, रक्तचाप प्रतिशोध आदि प्रकृतिप्रदत्त साधन ही हैं. अन्याय के परिणामस्वरूप होनेवाली वेदना और उद्दण्डता ही तो इन साधनों की नियन्त्रण करती है.
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